Friday, 19 January 2018


कुपोषण उपचार के लियें समुदाय में कार्य करना जरूरी - श्री पी.सी बेरवाल
पोषण को लेकर एक्शन अगेंस्ट हंगर इंडिया, फाइट हंगर फाउंडेशन की कार्यशाला सम्पन्न 

राजसमंद, 19 जनवरी। बच्चों को कुपोषण से निजात दिलानंे के लियें समुदाय में कार्य करना जरूरी है। बच्चा कुपोषण से ग्रस्त नहीं हो इसकें लियें गर्भवती महिला को पोषण की जानकारी हो, कुपोषण से ग्रस्त बच्चों के परिजनों को कुपोषण के लक्षणों की जानकारी हो और बच्चों में कुपोषण उपचार के लियें समुदाय में कार्य करनेें की आवश्यकता है। 
यह विचार जिला कलक्टर श्री पी.सी बेरवाल ने जिला स्तर पर पोषण को लेकर एक्शन अगेंस्ट हंगर इंडिया, फाइट हंगर फाउंडेशन के द्वारा आयोजित कार्यशाला में व्यक्त कियें। 
उन्होंने कहा की गांव स्तर पर कार्य करने वाली एएनएम, आशा पोषण के बारें में गर्भवती महिला , प्रसूता महिला एवं परिजनों को जानकारी दे यह आवश्यक है। 
कार्यशाला में जिला प्रजनन एवं शिशु स्वास्थ्य अधिकारी डॉ सुरेश मीणा ने जिलें में पूर्व में संचालित समुदाय आधारित कुपोषण प्रबंधन कार्यक्रम की सफलता के बारें में जानकारी दी एवं बताया की 80 गांवो में कार्यक्रम का क्रियान्वयन किया गया एवं 534 से अधिक बच्चों को कुपोषण से मुक्त कर स्वस्थ किया गया।
पोषण को लेकर एक्शन अगेंस्ट हंगर इंडिया के प्रतिनिधियों द्वारा पॉवर पोइन्ट प्रजेन्टेशन के माध्यम से बताय गया कि राजसमंद में एनएफएचएस 4 2015-16 के आंकड़ो के अनुसार 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में नाटेपन की दर 38.6 प्रतिशल और सुखेपन की दर क्रमानुसार 28.9 प्रतिशत है। समुदाय आधारित कुपोषण प्रबंधन कार्यक्रम हेतु चुने गए 20 जिलों में गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों के आंकड़ो के अनुसार राजसमंद 7 वे स्थान पर है। आंकडे़े बताते है की पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में 11.8 प्रतिशत तीव्र कुपोषण से पीडि़त है। 38.8 प्रतीशत बच्चों का वनज सामान्य से कम है। इसी रिपोर्ट से पता चलता है कि प्रजनन के लियें सक्षम महिलाओं में 62 प्रतिशत को खून की कमी है, इसलियें इनके बच्चें भी कुपोषण का शिकार है। इसलियें प्रदेश सरकार ने इसे पोषण कार्यक्रम के लियें चुना है। राजस्थान भारत का पहला ऐसा राज्य है, जहां राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने विकास सहयोगियों के सहयोग से समुदाय आधारित कुपोषण प्रबंधन कार्यक्रम सफलता पूर्वक पूरा किया। राजसमंद में कुपोषण की स्थिती में सुधार हेतु एक नियमित पोषण कार्यक्रम की आवश्यक है। 
कार्यशाला में बताया गया की आम तौर पर 80 प्रतिशत कुपोषित बच्चों का सामुदायिक स्तर पर उपचार संभव है और केवल शेष 20 प्रतिशत बच्चे जिनमें शारीरिक समस्याएं पाई जाती है उन्हें कुपोषण उपचार केन्द्र में उपचार की आवश्यकता होती है। यदि यह कार्यक्रम लगातार चलाया जाता है तो समुदाय स्तर पर ही कुपोषण की स्थिती में सुधार लाया जा सकता है। यह अत्यंत आवश्यक है की राज्य में इस तरह का कार्यक्रम लगातार संचालित हो जिससें बच्चों की स्वास्थ्य स्थिती और उसकी प्रगति पर निगरानी रखी जा सकें। 
कार्यशाला में प्रमुख चिकित्सा अधिकारी डॉ सी.एल. डूंगरवाल, महिला एवं बाल विकास विभाग के उपनिदेशक इंदाराम मेघवंशी, उपमुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ इकरामुद्दीन चुड़ीगर, बाल परियोजना अधिकारी राजेश शर्मा ने विचार व्यक्त कियें एवं कुपोषण के विरूद्ध क्रियाशील होने का संदेश दिया। 
कार्यशाला के प्रारम्भ में कार्यक्रम प्रबंधक एडवोकेसी संजय कुमार ने अतिथियों का स्वागत किया और कार्यशाला के उदे्श्य पर विस्तार से चर्चा की। 
कार्यशाला में खंड मुख्य चिकित्सा अधिकारी, बाल विकास परियोजना अधिकारी, जिला कार्यक्रम प्रबंधन के प्रतिनिधीगण उपस्थित थें। 

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